नई टिहरी। संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की पहल पर संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के सौजन्य से टैगोर नेशनल स्कॉलर डॉ. विकास फोंदणी के संयोजन में आधुनिक युग में ढोल और ढोली का सांस्कृतिक महत्व विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया। जिसमें विशेषज्ञों ने ढोल सागर, ढोल विधा के बारे में अवगत कराया। डायट सभागार में आयोजित सेमिनार का प्राचार्य डॉ. हेमलता भट्ट ने दीप जलाकर शुभारंभ किया। सुरगंगा संगीत विद्यालय की सांस्कृतिक टीम मीनाक्षी सेमवाल, समीक्षा सेमवाल ने मंगलाचरण से आगाज किया। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रो. डीआर पुरोहित ने ढोल को संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण यंत्र बताकर आमजन में इसकी क्या उपयोगिता बताई।
वर्तमान दौर में ढोल अंतर्राष्ट्रीय भूमिका में अपनी पहचान बना चुका है। सेमिनार का मुख्य आकर्षण राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सोहन लाल ने ढोल को प्रयोग की दृष्टि से अवगत कराते हुए ढोल की विभिन्न तालों से रूबरू कराकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सुखारु लाल ने उनका बखूबी साथ दिया। संयोजक डॉ. विकास फोंदणी ने ढोल के परिचयात्मक स्वरूप के सांस्कृतिक परिवर्तनों को बताया। उनकी ओर से तैयार किए गए ढोल और ढोली नामक वृत्तचित्र का भी प्रस्तुतीकरण किया गया। वरिष्ठ पत्रकार व रंगकर्मी महीपाल सिंह नेगी ने ढोल के संवादात्मक स्वरुप को बताते हुए ढोल को वैज्ञानिक दृष्टिकोण की व्याख्या करते हुए ढोल को बिग बैंग थ्योरी से जोड़ा। हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विवि के संगी विभाग डॉ. राजेश जोशी ने ढोल के शास्त्रीय पक्ष को उजागर करते हुए ढोल की तालों का विश्लेषण किया। वहीं अरविंद कोहली ने जागर गायन की प्रस्तुति दी, उनके साथ ढोल और दमाउ पर सौरभ और दिव्यांश जखमोला ने संगत की। इस मौके पर आदित्य पांडेय, आयुष डोभाल, डॉ. राज किशोर, दीपक रतूड़ी, डॉ. सुमन नेगी, राजेंद्र बडोनी, अर्जुन चंद्र, डॉ.यूएस नेगी,विनोद बेंजवाल, मोहित नेगी, हरीश बडोनी, बीडी कुनियाल आदि मौजूद थे।