विकासनगर। बावर की छह खतों में मनाई जा रही दीवाली के चौथे दिन जैंदोई पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान पंचायती आंगन देवगीत और लोकगीतों से गुंजायमान रहे। ग्रामीणों ने लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाया। जैंदोई की अगली सुबह काठ के हाथी नृत्य के साथ ही पांच दिवसीय दीवाली पर्व का समापन होगा। रविवार को जैंदोई के पर्व के दौरान शाम ढलते ही ग्रामीण पंचायती आंगनों में एकत्र हो गए थे। ग्रामीणों ने सीताहरण, केदार बाछा, महाभारत पर आधारित लोक हारुल पर जमकर नृत्य किया। इसके साथ ही ‘साईणारा सामा सामा, नौणी चौगाणे दा बाजला ढ़माणा…, ताउखें आई सामिया नईणू दू कागी काई आलो बाइदा… जैसी कई हारुल पर देर रात तक नृत्य का दौर चलता रहा। चिल्हाड़ गांव में खेला तमाशा, नटवा लकड़ी के चर्खा जैसे सर्कस और मदारी नृत्य से ग्रामीणों का मनोरंजन किया गया। इससे पूर्व ग्रामीणों ने जैंदोई की अगली सुबह होने वाले काठ के हाथी नृत्य के लिए हाथी तैयार किया। इस पर बैठकर स्याणा नृत्य करते हैं। पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व में होलियात जलाई जाती है। पटाखों के शोर शराबे से हटकर यहां प्रदूषण मुक्त दीवाली मनाने की परंपरा रही है।
होलियात रोशनी और उत्साह का प्रतीक
तिल, भंगजीरे, हिसर, भीमल और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर होलियात तैयार किया जाता है। दीवाली की शरुआत पर होलियात का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर होलियात खेलते हैं। कई ग्रामीण होलाड़े से करतब भी दिखाते हैं। पहाड़ों में उत्साह और उत्सव दोनों समय होलियात खेली जाती है। यह रोशनी और उत्साह दोनों का प्रतीक है। हारुल नृत्य और लोक गीतों पर ग्रामीण थिरकते हुए नजर आए।